Thursday, 14 March 2013

जज़बात का हिसाब हो


मुझे मालूम है सनम तुम 
ज़र्रा नही आफ़ताब हो

बताता है सब तुम्हारा चेहरा 
जैसे खुली किताब हो


तुम मेरे लिए खुदा का दिया 
खूबसूरत खिताब हो

दिल यूं धड़कता है जैसे वो 
तुम्हारे लिए बेताब हो


मेरी आंखो में भी उमड़ता हुआ 
प्यार का सैलाब हो

रूठते मनाते हुए तुम मेरे हर 
जज़बात का हिसाब हो


जो वक्त ने किए उन सारे 
सवालों का जवाब हो

जिंदगी में तुम ही सबसे अजीज़ 
नायाब और लाजवाब हो,.....प्रीति सुराना

5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (16-3-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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  2. बेहतरीन ..प्रीती जी मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है

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  3. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

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