मुझे मालूम है सनम तुम
ज़र्रा नही आफ़ताब हो
बताता है सब तुम्हारा चेहरा
जैसे खुली किताब हो
तुम मेरे लिए खुदा का दिया
खूबसूरत खिताब हो
दिल यूं धड़कता है जैसे वो
तुम्हारे लिए बेताब हो
मेरी आंखो में भी उमड़ता हुआ
प्यार का सैलाब हो
रूठते मनाते हुए तुम मेरे हर
जज़बात का हिसाब हो
जो वक्त ने किए उन सारे
सवालों का जवाब हो
जिंदगी में तुम ही सबसे अजीज़
नायाब और लाजवाब हो,.....प्रीति सुराना
लाजवाब!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (16-3-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
behatareen
ReplyDeleteबेहतरीन ..प्रीती जी मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है
ReplyDeleteकिस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
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