Wednesday, 27 February 2013

अपने हिस्से की प्रीत,


सुनो!


तुम 
कर्तव्य कहते रहे हो 
अकसर
रिश्तों के निर्वाह को,..

तो तुम निभाओ 
कर्तव्य
मै निभा लूंगी 
अपने हिस्से की प्रीत,...

पर 
तुमने एहसासों के नाम पर
मुझ पर अकसर
अधिकार ही जताए हैं

और 
मैंनें हमेशा ही
अधिकार के बहाने 
कर्तव्य निभाए है,,....

जानते हो ये फर्क क्यूं है
क्यूंकि
मैंने हर दस्तूर में प्रेम निभाया है
और
तुमने प्रेम में हर दस्तूर निभाए हैं,......प्रीति सुराना

2 comments:

  1. बहुत खूब ... गहरा एहसास लिए ... प्रेम को दिल से निभाना आसान नही ... लाजवाब भाव ...

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  2. बहुत सुंदर रचना .....बहुत भावपूर्ण
    अपना पता छोड़ रही हूँ ..कृपया नजर डालें ...
    http://shikhagupta83.blogspot.in/

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