"मेरे शब्दों"
जाओ ढूंढ लो
अब कोई नया ठिकाना,..
मेरा ही आसरा नही है
मैं तुम्हे कैसे संभालूं,..
अब नही बचा सामर्थ्य मुझमें
तुम्हारे साथ खेलने का,..
तुम बहुत शक्तिशाली हो,
और तुमसे खेलने के लिए
जिन साथियों का सहारा था
सब छूट गए हैं मुझसे,..
पहले प्यार रूठा फिर यकीन टूटा
और जब हौसले पस्त हुए,
तो उम्मीदों के चांद-सूरज
और ख्वाहिशों के सितारे भी अस्त हुए,
इस पर भी विचारों और कल्पनाओं ने
काफी साथ निभाया..
मन के कोरे पन्नों पर
तुमसे बहुत कुछ लिखवाया,..
पर एक दिन वक्त की आंधी चली,
और ले उड़ी मेर कल्पनाओं को,...
और तब विचार भी हो गए संज्ञा शून्य,
बेचारे सह न पाए कल्पनाओं की जुदाई,...
अंततः आंसुओ की ऐसी बाढ़ आई,..
धुल गई सारी पढाई लिखाई,...
और फिर एक दिन खत्म हो गई
मेरी भावनाओं की स्याही,...
सोचा फिर भर लूंगी नए भावों से जिंदगी की दवात
ताकि जी सकूं तुम्हारे साथ खेलते हुए,,,
अपनी भावनाओं की छमछुपाई,
लंगडी़-दौड़,भागमभाग और झूठीमूठी लड़ाई...
पर आज फिर हो गया
एक और हादसा,..
बंद हो गया वो भी
जो था आखरी रास्ता,...
टूट गई मेरी वो दवात
अपनो ने ऐसी ठोकर लगाई,...
किसमे भरूं अब स्याही...
इससे ज्यादा क्या होगी तबाही,,..
दुनिया भरी पड़ी है
शब्दों के जादूगरों और खिलाड़ियो से
तुम जाओ और जियो
एक नई दुनिया बसाकर,
मेरा क्या है???
इतना खोया तो तुम औऱ सही,..
बस मै तुम्हे सुरक्षित देखना चाहती हूं,
मेरा वजूद मिटने से पहले,..
"मेरे शब्दों"
जाओ ढूंढ लो
अब कोई नया ठिकाना,...प्रीति सुराना
Mashaa Allah, ek mahan lekhak aur kavi hi apne mun ke bhavon ko kavye ki aici ada me piro sakta he .Aap ne sahi likha ki mun ko poori azadi aur space de diya taa ki manvata bandhi rhe.
ReplyDeletethanks
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