सुनो ना !
आज
आकाश की रंगत
लुभा रही है,..
पतंगो से भरा आकाश
मानो बुला रहा है
उंची उड़ान भरने के लिए मुझे
एक पतंग की मानिंद,..
सच कहूं,
तो मैं भी
उड़ना चाहती हूं,
पर इस गलतफहमी के साथ नही
कि मैं उड़ रही हूं
कल्पनाओं के आकाश में
उनमुक्त,...
बल्कि
इस विश्वास के साथ
कि यथार्थ के धरातल में
मेरी जीवन डोर बंधी है तुमसे,
और तुम मेरी उड़ान मेरी उनमुक्तता को
प्रेम के मांजे में पेंच,तनाव या ढील देकर
सुरक्षित रखोगे मेरा वजूद,....
कभी
हवाओं ने अपना रूख बदला
तो लपेट लोगे
अपने अधिकार की चरखी में
अपने प्रेम का मांजा
और
समेट लोगे मुझे,....
पर सुनो !
जो कभी कट कर गिरने लगूं
तो ये हौसला भी रखना कि दौड़कर थाम सको
वो सिरा जो हमें जोड़ता है,
क्योंकि
कटकर किसी और आंगन में गिरना
मुझे गवारा न होगा,...
और हां !
मैंने सुना है
मांजा बहुत पैना होता है,
तुम जरा संभालना
अपनी हथेलियों को,
ताकि मुझे दर्द न हो
कटने का,....
एक बात और सुनो ना !
मुझे
एक सुरक्षित आजादी के लिए
तुमसे बंधे रहना
सार्थक लगता है
और
सुखद भी,.......प्रीति सुराना
thanks यशवन्त माथुरji
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