Friday, 11 January 2013

पढ़ सको तो पढ़ो


सुनो,

मैं कवि नही हूं 
न है मुझे 
किसी विधा का ज्ञान,..

मैं लिखती वही हूं 
जो भी 
मेरे मन में उमड़ता है,..

न जाने क्या है 
जो बदलता है 
मन के भावों में,..

और न जाने कैसे 
भावों से 
शब्दों में ढलता है,...

ये "मन की बात" है
पढ़ सको तो पढ़ो 
"मेरा मन",..

न समझा करो
कोई गीत 
गजल या कविता है,....प्रीति सुराना

1 comment:

  1. main ....anpadh ..kya janoon man ki bhasha
    dekhta hoon sunta hoon samajhta hoon bas ......prem ki bhasha


    (.)

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