सुनो,
मैं कवि नही हूं
न है मुझे
किसी विधा का ज्ञान,..
मैं लिखती वही हूं
जो भी
मेरे मन में उमड़ता है,..
न जाने क्या है
जो बदलता है
मन के भावों में,..
और न जाने कैसे
भावों से
शब्दों में ढलता है,...
ये "मन की बात" है
पढ़ सको तो पढ़ो
"मेरा मन",..
न समझा करो
कोई गीत
गजल या कविता है,....प्रीति सुराना
main ....anpadh ..kya janoon man ki bhasha
ReplyDeletedekhta hoon sunta hoon samajhta hoon bas ......prem ki bhasha
(.)