Saturday, 5 January 2013

"सूरज आग का गोला है"


आज सर्द गुनगुनी धूप में
बैठे बैठे यूं ही एक खयाल आया
बचपन से सुना और पढ़ा है
"सूरज आग का गोला है"

पर जब हवांए तेज चलती हैं
तो लपटें अपनी उग्रता क्यों नही दिखाती
या जब भी बारिश होती है तब 
ये लपटें बुझ क्यों नही जाती

आखिर किस चीज का बना ये सूरज
अगर कांच का होता तो गर्म होते ही टूट जाता
पर कांच नही तो इतनी पारदर्शिता कैसे
भीतर की आग साफ नजर आती है

पर इसकी आग का संयम देखो
कभी अपनी सीमाओं से बाहर नही आती
न किसी को जलाती न कोई तबाही लाती
पर अपनी रौशनी से सारी सृष्टि जगमगाती

और ऐसा भी नही है कि सूरज बुजदिल है
क्योंकि बुजदिल होता तो अपनी तपन से
जीवन रक्षक बनकर सृष्टि की
विषाणुओं की रोकथाम न करता

न जीवन होता और न भोजन होता 
न होते दिन और न रात होती
न जीवन में धूप-छांव के एहसास मिलते
न सरदी न गरमी न बरसात होती

और तो और वो चांद जो कभी साजन
कभी सजनी कभी मामा कहलाता है
वो चांद भी सूरज की रोशनी पाकर
हर रात तारों के बीच जगमगाता है

पारदर्शिता सहनशीलता और संयम
सूरज के गुण सीख ले कोई ऐसा इंसान नही है
परोपकार के साथ-साथ हर बुराई से लड़ना
खुद जलकर सबको जीवन देना आसान नही है

पर चांद को देखो जिसने सीख ली पारदर्शिता 
सूरज आग नही छुपाता वो दाग नही छुपाता
बिखेरता है सूरज की दी रौशनी दुनिया में
उसकी शीतलता सीखे कोई इतना महान नही है,..

बिलकुल सच है ये कुदरत की हर चीज
चांद-सूरज, धरती-आकाश, आग- पानी,
सृष्टि की हर कृति अनुपम आदर्श है
बस इसकी कद्र करे ऐसा कद्रदान नही है,.......प्रीति सुराना

8 comments:

  1. बहुत ही अच्छी लगी ..

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  2. सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  3. पारदर्शिता सहनशीलता और संयम
    सूरज के गुण सीख ले कोई ऐसा इंसान नही है
    परोपकार के साथ-साथ हर बुराई से लड़ना
    खुद जलकर सबको जीवन देना आसान नही है .... और कठिनाई से लोग दूर ही रहते हैं निर्लिप्त भाव लिए

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  4. पर इसकी आग का संयम देखो
    कभी अपनी सीमाओं से बाहर नही आती
    बहुत अच्छे शब्दों में ढले सुन्दर भाव

    recent poem : मायने बदल गऐ

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