"कवित्त छंद"
नासमझ नादान हूं,सब से अनजान हूं,
जग के सारे चलन,तू ही बतलाता है।
हालात जो बदले तो,मन मेरा डर जाए,
तब पिया मुझे बस,तू ही याद आता है।
जमाने को देख कर,मैं जो घबरा जाऊं तो,
अपनी मीठी बातों से,मुझे बहलाता है।
तुझको ही जानू बस,तझको ही पहचानू,
सुनके ये बात मेरी,बडा इतराता है।,.....प्रीति सुराना
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