"कवित्त छंद"
मुखड़ा सुहाना तेरा,रूप लगे चंद्रमा सा,
मुखड़ा सुहाना तेरा,रूप लगे चंद्रमा सा,
सांवली सलोनी तेरा,सादगी है गहना।
अधर गुलाब से है,महका अंदाज तेरा,
बिन कुछ कहे भी यूं,साथ मेरे रहना।
चुप चुप रहते है,वाचाल तेरे नयन,
फिर भी लगे है जैसे,कुछ तो है कहना।
बहते हैं मोती जैसे,पलकों की कोरों से जो ,
कब तक रोकोगी यूं,बादलों का बहना।,....प्रीति सुराना
चुप चुप रहते है,वाचाल तेरे नयन,
ReplyDeleteफिर भी लगे है जैसे,कुछ तो है कहना।
बहुत सुन्दर.
dhanywad निहार रंजन ji
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