हर बार यही सोचा तुमने
कि लोग क्या सोचेंगे,..
हर बार वही किया तुमने
जो लोगों को अच्छा लगे,..
एक बार भी तुम वैसे नहीं जिए
जैसा तुमने या मैंने चाहा,..
तुम्हे खुद की परवाह नही
ये तो मैं जानती हूं,..
पर अब मैं कशमकश में हूं
क्यूकि मैं समझ नही पाती,..
जब तुम प्यार मुझसे करते हो
तो परवाह दुनिया की क्यों?
मैंने यही सुना और माना है
कि जिसे हम प्यार करते हैं,..
वही हमारी दुनिया बन जाता है
जिसकी हम परवाह करते हैं,..
क्या सच में तुम्हे मुझसे प्यार है
या ये मेरी गलतफहमी है,..?
यदि हां तो मैं तुम्हारी दुनिया क्यूं नही हूं
तुम्हे मेरी परवाह क्यूं नही है,...?...प्रीति सुराना
बहुत -बहुत बधाई
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