सद्भाग्य से मनुज जन्म पाया,
उस पर जैन कुल मिला,
मन की बंजर धरती को,
संस्कार की मिट्टी मिली,
अहो भाग्य से सद्गुरू मिले,
मन उपजाऊ धरती बना,
सद्गुरू के सद्वचन ने,
वैराग्य का बीज रोपित किया,
जिनवाणी का श्रवण किया,
तो मन उपवन सिंचित हुआ,
मन ने कई नियम लिए,
शास्त्रों का भी पठन किया,
तब कंही जाकर मन में,
वैराग्य का अंकुरण हुआ,
गुरूजनों से शिक्षित होकर,
आज यह वैराग्य वृक्ष बना,
स्वजनो की आज्ञा पाकर,
यह जीवन अब धन्य हुआ,
परम कृपा और पुण्य योग से,
दीक्षा का पावन अवसर आया,
अब यही है याचना गुरूजनो,
और सभी स्वजनों से,
दें यही आशीष कर्म काटकर,
सयंम से वैराग्य का पालन करू ,
सिर्फ मोक्ष का फल ही अब,
संयम जीवन का लक्ष्य हो,.....प्रीति सुराना
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