Tuesday 6 November 2012

अनबूझ पहेली


सुनो!
एक लंबे अरसे से मैं तुम्हारे साथ?? हूं 
या तुम्हारे आसपास हूं 

कभी लगता है तुमसा अपना कोई नही,
कभी तुम बिलकुल अजनबी लगते हो,
कभी लगता है मैंने तुम्हे देखा सुना समझा और जान लिया,
पर अगले ही पल तुम फिर नए से लगते हो,

कभी तुम जिद्दी मगरूर तानाशाह से दिखते हो,
पर सच पूछो तो मुझे तुम उस अबोध शिशु से लगते हो,
जो अपनी बातें कहता तो है पर कोई समझता नहीं,
और तुम खीझने लगते हो,

तुम अच्छे हो या सच्चे हो,
समझदार हो,परिपक्व हो या जिद्दी से बच्चे हो,
तुम जैसे भी हो मुझे प्रेम है तुमसे,..
क्या हुआ जो तुम आज भी मेरे लिए एक अनबूझ पहेली हो,....प्रीति सुराना

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