जाने क्यूं???
मुझे नही लुभाती ऊंची ऊंची इमारतें,..
मुझे ऊंचे ऊंचे पेड़,पहाडि़यां,
उड़ते हुऐ रंग बिरंगे गुब्बारे,पतंगें,
पंछियों की उन्मुक्त उड़ान,
और तारों से भरा आकाश,
आज भी अच्छा लगता है,
मुझे नही सुहाता द्विअर्थी संवादों में लिपटा हास्य,..
मुझे छोटी-छोटी बातों में ठहाके,
शरारतों के बाद की खिलखिलाहट,
खिलखिलाहट की खनक,
निश्छल हंसी और मासूम नटखट बचपन,
आज भी अच्छा लगता है,
मुझे नहीं है पसंद बड़ी बड़ी बातों वाली मोटी किताबें,...
मुझे पत्रिकाओं की छोटी छोटी कहानियां,
चुटकुले और मुक्तक,
दर्द से भरी प्रेम कविताएं पढ़ना,
और अपनी डायरी सिरहाने रखकर सोना
आज भी अच्छा लगता है,
मुझे नही करते आकर्षित शापिंग मॉल या शेयर मार्केट,..
मुझे मेले की दुकानों की रंगत,
घर घर का खेल,
गुड्डे-गुड़ियों का ब्याह,लुका-छुपी,
सांप-सीढ़ी और कौडियों वाला खेल,
आज भी अच्छा लगता है,
मुझे नही लगती अच्छी इंटरनेट पर बातचीत(चैटिंग),..
मुझे घर की देहरी पर सखियों से बतियाना,
एक दूसरे के सुख-दुख सुनना और सुनाना,
अपनी बचपन की सखी को लंबे-लंबे खत लिखना
फोन पर जिंदगी की लंबी लंबी बातें करना,
आज भी अच्छा लगता है,
मुझे नही आते समझ घोटाले,भ्रष्टाचार और राजनीति,..
मौजूदा हालातों पर होने वाले
लंबे-लंबे विमर्श से क्या सुधरेगा?
मुझे समाज सुधार की नही,
खुद में सुधार की बातों पर अमल करना,
आज भी अच्छा लगता है,
मुझे नही है चाहत भागमभाग वाली जिंदगी की,...
मुझे अकेले बैठकर खुद को गुनना,
गुनगुनाना,खुद को सुनना,
यादों के सिलसिले,
और नम आंखों के साथ मुस्कुराना,
आज भी अच्छा लगता है,
मुझमें नही है समझ बंडे-बड़े दर्शन और सिद्धांतों की,....
रूठना-मनाना और नोक-झोंक
सपनें,भावनाएं,हंसी-आंसू,
और प्रेम,स्नेह,ममता और भरोसा,
जैसे बड़े अर्थों वाले छोटे छोटे एहसासों को जीना,
आज भी अच्छा लगता है,.......प्रीति सुराना
(चित्र गूगल से साभार)
bahut sundar reachna
ReplyDeletedhanywad Mohnish Katiyar ji
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