Thursday, 11 October 2012

"कंहा हो तुम"



कंहा हो तुम अब लौट भी आओ,
बेकरार जिंदगी तुम बिन न जी जा रही है,.... 

धड़कनों की आवाज सुनो जरा,
ये तुम्हारा ही नाम दोहरा रहीं हैं,
कंहा हो तुम अब लौट भी आओ,
बेताब धड़कने तुम्हे बुला रहीं हैं,...

तुम बिन न जीने की ज़िद करके,
ये सांसें भी आज लड़खड़ा रहीं हैं,
कंहा हो तुम अब लौट भी आओ,
बेचैन सांसे तुम्हे बुला रही है,...

राह तक रहीं हैं कब से ये आंखें,
और आज बस आंसू बहा रहीं हैं,
कंहा हो तुम अब लौट भी आओ,
बेसब्र आंखें तुम्हे बुला रहीं हैं,...

तुम्हारे इंतजार में अब ये जिंदगी,
मर-मर के खुद को जिए जा रही है,
कंहा हो तुम अब लौट भी आओ,
बेकरार जिंदगी तुम्हे बुला रही है,...

मेरी धड़कनें,सांसे और ये आंखें,
मिलन के लिए दिल को तड़पा रही है,
कंहा हो तुम अब लौट भी आओ,
बेकरार जिंदगी तुम बिन न जी जा रही है,.... प्रीति सुराना

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