Friday, 28 September 2012

लेखन


क्यूं लिखूा जाए वही जो किसी कविता सा लगे,
क्यूं न कोई लिखे "मन की बात" उसे बस यूं ही पढ़ा जाए,
क्यूं ढूंढी जाए किसी के लेखन में काव्य की विधाएं,
क्या विधा से महत्वपूर्ण नही है लिखने वाले की भावनाएं,......प्रीति सुराना

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