अभी-अभी जो चली हवा,
एक सर्द सा एहसास हुआ,..
दिल को करार सा मिला,
दर्द जाने कंहा गुम हुआ,..
गालों पे लुढ़क आई बूंदे,
आंखो को जाने क्या हुआ,..
मेरे लब जरा सा हंस दिए,
बेचैनियों को विदा किया,..
सब सोचने लगे मुझे देखकर,
अचानक मुझे ये क्या हुआ,..
नम थी मेरी आंखे भले ही,
पर खुशी का अहसास हुआ,..
कोई आकर न मुझसे मिला,
न बात,न ही कोई वादा हुआ,..
पर ये हवांए यूंही नही चली,
बेसबब तो कुछ भी न हुआ,..
जिसके लिए तरसी ये आंखे,
मैं जानती हूं "वो" आ गया,........प्रीति सुराना
क्या खूब लिखा है आपने ..
ReplyDeleteबस उकेर कर रख दिया है उन एहसासों को
जो उत्पन्न होता है मन में जब किसी आत्मीय के आस पास होने का बोध करता है
thanks
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