Tuesday 21 August 2012

"आज क्षमा का महापर्व है"


"आज क्षमा का महापर्व है"

"खामेमि सव्वे जीवा,सव्वे जीवा खमंतु मे।
मित्ती मे सव्व-भूएसु,वेरं मज्झं न केणइ।।"

"क्षमा"
कितना छोटा सा शब्द है है न
लेकिन किसी क्षमा से लेना या किसी को क्षमा कर देना कितना मुश्किल होता है,...
जबकि प्रकृति का हर कण हमें विनम्रता का कोई न कोई पाठ पढ़ाता है,...

धरती को देखो एक अकेली
जो बोझ जगत का सहती है,
नदिया का कोई घर नही
बस अविरल वो बहती है,

फूल खिलते है कांटो पर
फिर भी महकते रहते है,
पंछी को देखो भूखे हों तो भी
हरदम ही चहकते रहते हैं,

चांद और सूरज प्रहरी हैं
दिन रात की रचना करते हैं,
आपस में कभी देखा कि कभी 
ये किसी बात पर झगड़ते हैं,

फिर हम मानव ही क्यूं 
ये तेरा-मेरा करते है?
रोटी या कपड़ा और मकान
क्यूं बात बात पर लड़ते है??

भूल प्रकृति है मानव की
आओ अब पश्चाताप करें,
भूल जो की हो क्षमायाचना
और सब जीवों को माफ करें,

धन-वैभव और अहम् भूलकर
मन के सब बैर मिटा देंगे,
आज क्षमा का महापर्व है
बस क्षमा देंगे और क्षमा लेंगे,.....

विगत वर्षों में जीवन के किसी पड़ाव पर मन से,वचन से,कर्म से किसी को 
कष्ट दिया हो,कष्ट दिलवाया हो अथवा कष्ट जानकर प्रसन्न हुई
तो बारंबार करबद्ध होकर क्षमायाचना करती हूं,..मिच्छामि दुक्ङम.......प्रीति

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