हर स्त्री के भीतर सीता का अंश होता है ---
और हर पुरुष के भीतर कहीं रावण सोया रहता है ---
पर
हर बार ऐसा ही क्यूँ सोचा जाए,...
कभी कोई क्यूं नहीं सोचता
कि हर स्त्री में कहीं सूर्पनखा का अंश होता है,...
और हर पुरुष के भीतर कहीं राम/लक्ष्मण रहता है ...???????
ऐसा नहीं लगता की हम इसी तरह कभी अबला
और कभी ..देवी बनकर, .......
या फिर पुरूषों को ही दोष देकर
अपनी तरफ ध्यान आकर्षित करने के साथ साथ
अपने लिये ही कई ऐसे पैमाने और दायरे तय करते हैं, ..
जिससे हमें बाहर निकलना चाहिए, ..
कोई भी व्यक्ति केवल अच्छा या केवल बुरा नही होता
ये बात बिल्कुल सही है,..
पर हर बार इस बात को स्त्री और पुरुष के संदर्भ में
वर्गीकृत किया जाए,.......
या विमर्श का विषय बनाया जाए
जरूरी तो नही,......???????????????????,................प्रीति सुराना
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