सुनो!
तुम्हे याद है वो आसमानी रंग की साड़ी,
जो तुम हमारी सालगिरह पर इसलिए लाए थे,
क्योंकि वो रंग मुझे बहुत पसंद है,..
पर मैं जब अपने अधूरे सपनों को याद करती हूं,
मुझे आसमान का रंग जरा नही सुहाता,
क्योकि मैं पाना चाहती हूं थोड़ा सा आसमान,..
तुम जानते हो न मुझे गुलाब का हर रंग पसंद है,
पर मैं जब भी उदास होती हूं,...
मुझे उसका कोई रंग नही लुभाता,
तब मुझे याद रहते है सिर्फ गुलाब में कांटे,..
और मैं अपनी उन उदासियों में भूल जाती हूं,
रंग और खुशबू बस महसूस करती हूं चुभन,.....
तुम्हे पता है ना मुझे रातों में चांद तारों से,
अपने मन की बातें करना कितना अच्छा लगता है,..
पर जब भी मैं निराश होती हूं मुझे
चांदनी और सितारों की टिमटिमाहट,
और उसके साथ सपने सजाना भी नही भाता,..
लंबी लगती हैं रातें और महसूस हती है घुटन,..
तुम समझते हो न कि मैं सशक्त और समर्थ हूं,
हर परिस्थिति में अपने अस्तित्व की सुरक्षा के लिए,
इसलिए करती हूं खुद को मनुज माकर "मानव-विमर्श",..
पर जिन पलों में मैं अपना बिखराव महसूस करती हूं,
मै कमजोर होकर करने लगती हूं "स्त्री-विमर्श",...
अबला जैसे हीन शब्दो की मेरे कानों में गुंजन,..
जानते हो मैं आज तुमसे ये सब क्यों कह रही हूं??
क्योंकि मेरे इस विरोधाभासी व्यवहार की वजह,
तुम्हारे अलावा कोई नही समझ पाया,..
ये इसलिए होता है क्योंकि मेरे मन के भावों में,
मेरी बातों में मेरी मन की दशा झलकती है,..
क्योंकि मैं मन की सुनती हूं मष्तिस्क की नही,...
तभी तो आज जब मै तुमसे नाराज हुई,
और तुम्हे बुरा कहा तो तुम मुझसे नाराज नहीं हुए,
तुमने भर लिया मुझे आलिंगन में और संभाल लिया मुझे,..
क्योंकि तुम्हे याद रहा कि मैंने तुम्हे हमेशा मान दिया है,
तुम्हे याद है न मैंने हमेशा कहा है और आज फिर कहती हूं,.
"मेरे तुम",....
तुम सबसे अच्छे हो,...,..प्रीति
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