Friday 11 May 2012

सपनो के डेरे



बंद आंखों में सजाया जिन्हे
अपनी पलकों के साए में
कुछ ऐसे अरमान हैं दिल में
जो मेरे मन को बहलाते है

कुछ रंगीन खयाल भी मैने
इन खुली आंखों में सजाए हैं
और हैं कुछ अधूरे सपने भी
जो मुझको बहुत रूलाते हैं

ये कैसे सपने हैं मेरे जो
दर्द में भी मुझे हंसाते है
कभी हंसू दिल में लेकिन
आंखो में आंसू जाते हैं

जानू मै कि कौन है वो
जो रमता है भीतर मेरे
अंतर्मन मे ये सपनो के डेरे
अकसर मुझको भरमाते हैं,.......प्रीति सुराना

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