बंद आंखों में सजाया जिन्हे
अपनी पलकों के साए में
कुछ ऐसे अरमान हैं दिल में
जो मेरे मन को बहलाते है
कुछ रंगीन खयाल भी मैने
इन खुली आंखों में सजाए हैं
और हैं कुछ अधूरे सपने भी
जो मुझको बहुत रूलाते हैं
ये कैसे सपने हैं मेरे जो
दर्द में भी मुझे हंसाते है
कभी हंसू दिल में लेकिन
आंखो में आंसू आ जाते हैं
जानू मै कि कौन है वो
जो रमता है भीतर मेरे
अंतर्मन मे ये सपनो के डेरे
अकसर मुझको भरमाते हैं,.......प्रीति सुराना
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