Friday 11 May 2012

"जिसे जिंदगी कहते हैं"


अपने चारो ओर की 
आपा-धापी,भाग-दौड़,
चीखम-चिल्ला,लेन-देन,
गम-खुशी,प्यार- नफरत,.....

इन सब से दूर 
कुछ पल विराम देकर,
शांत,सहज,स्थिर और 
निर्लिप्त हो जाना चाहती हूं .....

कुछ पल खुद को छोड़ देना चाहती हूं 
माहौल रूपी हवा के बहाव में 
चाहे फिर हवाओं का रूख 
जीवन दिशाएं ही क्यूं न बदल दे,.....

बह जाना चाहती हूं 
भावनाओं रूपी नदी के बहाव में 
चाहे लहरें मुझे 
कहीं भी बहा ले जाएं.....

उड़ जाना चाहती हूं 
ख्वाहिशों रूपी बादलों के साथ 
फिर चाहे ये बादल कहीं भी बरस जाए 
या मुझे उड़ा ले जाए.....

बस कुछ पल जी लेना चाहती हूं 
चाहे जो हो जैसा हो जितना हो
बिना किसी शर्त या शिकायत के
वक्त जो भी दे वक्त की इनायत.....

बिल्कुल अबोध गर्भस्थ शिशु के 
उस जीवन की तरह
जो गर्भ में आने से लेकर 
जन्म लेने तक वह जीता है.....

यानि
जन्म और मृत्यु के 
बीच का दौर 
"जिसे जिंदगी कहते हैं",.....................प्रीति

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