Thursday 26 April 2012

अकसर



लोग कहते हैं कि
बहुत बदल गई हो तुम...
कैसे समझाऊ उन्हे
कि रंग
टूटे हुए पत्तों का 
अकसर बदल जाता है,

मैं भी साख से गिरा 
एक पत्ता ही हू
जिसे वक्त आंधी 
उड़ा ले आई है
उनके आंगन से परे
इन वीरान रास्तों पर ......प्रीति सुराना

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