तुम जब तक सजती संवरती इंद्रधनुषी रंगों से,
प्रतीक्षा के उन पलों में मनमोहिनी मैं कैसे रहता ,
तुम तो यादों की धुन अपने मन में गुनगुना रही थी,
मैं वही गीत तुम्हारे लिए अपनी बासुरी से बजा रहा था,
तुम जिसकी कस्तूरी की गंध सांसों में भर लाई हो,
मैं अपनी बांसुरी से उसी मृग को भरमा रहा था,
विकल था हृदय तो अपनी बांसुरी की धुन से,
मैं कान्हा तू मेरी राधा,सृष्टि को ये बता रहा था,........प्रीति
0 comments:
Post a Comment