आज किसी ने मुझे कहा कि
उम्र के ढलते हुए समय में,
उगते हुए सूरज को देखते हैं और,
फिर हम ढलते नही चांद हो जाते है,
मैने कहा आप चांद होकर खुश है,
पर मुझे तो बनना है सितारा,
जो अमावस या पूनम के साथ,
रोज घटता या बढ़ता नही,...
जो सूरज की ऱौशनी में समा जाए,
और चांद के आते ही जगमगाए,
जो दिन या रात के साथ रोज,
बार बार उगता या ढलता नही,,...
मैं रहना चाहती हूं जीवन में हमेशा,
मुस्कान की तरह कुछ इस ऐसे,
जो दुख की धूप मे खो जाए चाहे,
पर सुख की छांव में नजर आए,...
जो गम के बादलों के पीछे छुपा हो,
आंसुओं की बारिश मे भी रहे हमेशा,
न बदले जगह अपनी किसी हाल में,
रहे हमेशा जैसा है वैसा का वैसा,...
देखे जीवन के सारे बदलते रंग,
उगते सूरज से ढलती शाम तक,
पूनम से अमावस की रात तक,
रहे कायम जन्म से मृत्यु तक,...
"वो सितारा",,,,,,,,,,,,,,,,,प्रीति
0 comments:
Post a Comment