Monday, 9 January 2012

मृग मरिचिका



एक
अकेला राही,
मंजिल की तलाश में,
दूर निकल गया,
चलते-चलते, 
थककर,टूटकर,
गिर पड़ा
जमीन पर,...
पर 
वो हारा नही, 
सिर उठाकर सामने देखा,
उसे लगा,
कुछ दूर पर
एक जल स्रोत है,
जो उसे फिर से ताज़गी देगा
और
वो फिर निकल पड़ेगा,
अपनी तलाश में,...
इसी उम्मीद पर वह उठा,
आगे बढ़ा,
उस स्रोत तक पंहुचने के लिए,
मगर अफसोस,
वो जल स्रोत नहीं,
एक मृग मरिचिका थी,
तब उसे होश आया,
वो जंहा पहुंच चुका है,
वो एक तपता रेगिस्तान है,...
जंहा 
उसके जज़बातों का महल 
टूटकर, 
रेत-रेत होकर,
बिखरा पड़ा है,.....प्रीति

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