बिछाए होंगे फूल कई लोगों ने,
आ मैं बिछा दूं अपनी नजर
तेरी राहों में,
न हो कदमों में जमीं,न सरपरस्त आसमां हो,
मैं तो रहना चाहूं बस,
तेरी पनाहों में,
मचलते हैं लाखों अरमां मेरे दिल में,
तड़प के सिमट जाने को,
तेरी बांहों में,
चाहा तो सभी अपनों ने है बड़ी शिद्दत से मुझे,
पर न जाने कैसी कशिश है,
तेरी चाहों में,
यूं तो तूने बहुत सताया है,रूलाया है,
अपने प्यार को तरसाना बड़ी खता है,
तेरे गुनाहों में,
न जाने पूरे हों या न हों,ये मेरे सच्चे-झूठे ख्वाब,
जो बसा करते हैं आजकल,
मेरी निगाहों में,....प्रीति
0 comments:
Post a Comment