इन बंद भीगी पलकों ने
जिन गमों को खुद में छिपाया था,
आज उसे ही इन आंखों ने,
कोरों से छलकाया था,
इन भीगी पलकों के नीचे,
जो घना अंधेरा छाया था,
क्या इस कालिमा का कारण,
यंहा कोई पढ़ पाया था,
कुछ टूटे स्वपन व अरमानों को,
इन पलकों में हमने छिपाया था,
पर अब तक कोई ये जान न पाया,
इन पर ये गीलापन क्यूं छाया था,
हमारे आंसू न देखे कोई,
इसलिए पलकों को झुकाया था,
पर इन्ही बेवफा आंखों से ही,
ये राज उजागर हो पाया था,
शायद खुशियों का कोई दीप जले,
इन आशाओं का साया था,
इसलिए इन आंखों ने आंसू,
कोरों से छलकाया था,
इन बंद भीगी पलकों ने
जिन गमों को खुद में छिपाया था,,.....प्रीति
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