दर्दों का सिलसिला चलता रहा,
आंसुओं के समंदर बनते रहे,
दुनिया थी बेखबर इससे,
सितमगर सितम करते रहे,
थी कुछ आरजुएं हमारी भी,
थे कुछ तमन्नाओं के काफिले,
जो खो गए कहीं सरहदों में,
हम यूं ही उन्हे ढूंढते रहे,
दर्दों का सिलसिला चलता रहा,
आंसुओं के समंदर बनते रहे,
थे कुछ पराए,कुछ अपने,
थे कुछ चाहत,कुछ सपने,
जो सब टूट चुके हैं अब,
बस उन्ही को याद करते रहे,
दर्दों का सिलसिला चलता रहा,
आंसुओं के समंदर बनते रहे,
थे कुछ अरमां,कुछ ख्वाब,
थी कुछ हमारी कल्पनांए,
हम कल्पनाओं के चलचित्र में,
भावनाओं के रंग भरते रहे,
दर्दों का सिलसिला चलता रहा,
आंसुओं के समंदर बनते रहे,.......प्रीति सुराना
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