Tuesday 13 December 2011

गुनाह



या खुदा
मैनें ऐसा क्या गुनाह किया,
कि मुझसे गमों का साया
जुदा नही हो सकता?
यदि पाप किए हों
पिछले जन्मों में,
तो उसका कर्ज
अदा नही हो सकता?
मैं उब चुकी हूं
अब इन वीरान वादियों से,
क्या मेरा गुलशन भी
खिला खिला नही हो सकता?
अब तक तो जीवन में
हर वक्त तनहा रही,
क्या तनहाईयों का ये आसमां
महफिलों सा सजा नही हो सकता?
हर पल इस दिल को
उदासियों के कांटे चुभे,
क्या ये चुभन अब
फूलों का कारवां नही हो सकता?
मैं थक गई हूं समेटते हुए,
हर बार अपने ही सपनो के टुकड़े,
क्या मेरी जिंदगी का
कोई भी सपना पूरा नही हो सकता?
क्या मुझसे गमों का साया
जुदा नही हो सकता??????????,.......प्रीति सुराना 

0 comments:

Post a Comment