हां!
बिलकुल सच
बहुत अजीब
बहुत मुश्किल
कशमकश का वो कठिन दौर
जिसे उपमा दी है लक्ष्मणरेखा की
जिसे लाँघ कर वजूद खो जाए
और
बिन लांघें जीवन में मृत्यु तुल्य
नितांतता का कटु अनुभव,
मेरा मन जिसे जीवनरेखा कहता है
जिसके इस पार रहकर
मै,मैं नही हूं
और
उस पार भी
मैं,मैं नही हूं
क्योंकि मैं इंसान कंहा हूं ???
कितनी अजीब और दुष्कर
है न
"स्त्रीत्व"
के
अदृश्य बंधन की कैद .....प्रीति
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