मैने कहा था
लिखो मुझ पर कवितायेँ,
भर दो मेरी जिदगी के कैनवास पर
उन भावों के रंग,
जिन्हें मैनें
तुम्हारी काबिलियत की टकसाल में,
समर्पित कर दिया था,
तुम्हारे एहसास
और
विश्वास की तप्त भट्टी में,
जिसमे पिघल कर
मेरे सारे एहसास
एकसार हो गए थे,
और
फिर तुमने
अपनी क्षमता की छलनी से छानकर,
उसे अपने प्रेम के पात्र में उढेल दिया था,
और तभी छनकर अलग हो गई थी,
धोखे -फरेब- छल की गर्द,
जिसमें कोई मिलावट नही है,...
शेष रहा है
निर्मल निश्छल निस्वार्थ प्रेम,..
अब तो
मेरी आंखो
से भी छलकती है,
मेरे मन की कोमल,
निर्मल संवेदनाएं,
क्या अब भी
मेरी भावनाओं के अर्थ
तुम्हारी
कविताओ के अर्थशास्त्र मे
वो शब्द नही ढूंढ पाए..?
कि तुम लिखो
मुझ पर कवितायेँ,..
मेरे लिए
जिसके शब्द
इस बार वाष्पित न हो,
धुलने के बाद भी
कैनवास पर बचे तो
हमारे प्यार के निशान !!,.....प्रीति
भर दो मेरी जिदगी के कैनवास पर
उन भावों के रंग,
जिन्हें मैनें
तुम्हारी काबिलियत की टकसाल में,
समर्पित कर दिया था,
तुम्हारे एहसास
और
विश्वास की तप्त भट्टी में,
जिसमे पिघल कर
मेरे सारे एहसास
एकसार हो गए थे,
और
फिर तुमने
अपनी क्षमता की छलनी से छानकर,
उसे अपने प्रेम के पात्र में उढेल दिया था,
और तभी छनकर अलग हो गई थी,
धोखे -फरेब- छल की गर्द,
जिसमें कोई मिलावट नही है,...
शेष रहा है
निर्मल निश्छल निस्वार्थ प्रेम,..
अब तो
मेरी आंखो
से भी छलकती है,
मेरे मन की कोमल,
निर्मल संवेदनाएं,
क्या अब भी
मेरी भावनाओं के अर्थ
तुम्हारी
कविताओ के अर्थशास्त्र मे
वो शब्द नही ढूंढ पाए..?
कि तुम लिखो
मुझ पर कवितायेँ,..
मेरे लिए
जिसके शब्द
इस बार वाष्पित न हो,
धुलने के बाद भी
कैनवास पर बचे तो
हमारे प्यार के निशान !!,.....प्रीति
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