Tuesday 13 December 2011

तनहाई


आज फिर तनहाई ने,
मेरा दामन चुराया है,...
आज फिर किसी ने मुझे,
रूसवाई का किस्सा सुनाया है,...

एक कशिश तो थी ही दिल में,
फिर ये किस्सा कोई तूफां लाया है,
कुछ पल तो रोकर हंसते थे,
जमाने ने फिर गमगीं बनाया है,.
आज फिर तनहाई ने,
मेरा दामन चुराया है,...

चाह थी मंजिल की,
किसी ऊंचे मुकाम पर,
आज उसी ऊंचाई पर हमराही,
तनहाई को पाया है,
आज फिर तनहाई ने,
मेरा दामन चुराया है,...

जमाने से किसी ने मुझे,
नहीं देखा था यूं चुपचाप,
आजहर महफिल ने 
मुझे फिर उदास पाया है,
आज फिर तनहाई ने 
मेरा दामन चुराया है,......प्रीति सुराना

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