Friday 9 December 2011

"मुझे चांद चाहिए"



एक बार सुना था एक बच्चे को ज़िद करते हुए

"मुझे चांद चाहिए"...

और इस ज़िद पर 
मैने
बड़ों को ज़ोर से हंसते हुए भी सुना था...

उस ज़िद का अर्थ आज समझा है 
मैने,

और बड़ों की हंसी के मायने को भी आज ही जाना है..

जब आज मेरे मन ने 

अपनी समंदर सी अथाह मूक संवेदनाओं को

चंद शब्दों में पिरोने की कोशिश की,

या यूं कहूं नाकाम कोशिश की,

अपनी भावनाओं  के अविरल आवेग को 

शब्दों के सेतू में बांधने की..

और जब न पिरो सकी,न बांध पाई,

अपने मन की अनवरत बहती तरंगो को

जो बहना चाहती थी..

ख्वाहिशों के उन परिंदो को,

जो आकाश में उन्मुक्त होकर उड़ना चाहते थे,..

तब मैं रूक गई थककर
और

सोचने लगी कि क्या करूं?

तब याद आई मुझे वो बात,...

एक बार सुना था एक बच्चे को ज़िद करते हुए

कि "
मुझे चांद चाहिए"...

और इस ज़िद पर मैने

बड़ों को ज़ोर से हंसते हुए भी सुना था...

उस ज़िद का अर्थ आज समझा है 
मैने,

और बड़ों की हंसी के मायने को भी आज ही जाना है,

आज मैं भी तो उस नादान बच्चे की तरह,  

चांद को पाने की कोशिश ही तो कर रही हूं,....

कल जिस बात पर मैंने

बड़ों को हंसते हुए सुना था,

क्या आज दुनिया नही हंसेगी मुझ पर कि...

"मुझे चांद चाहिए"..............प्रीति सुराना

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