Monday, 26 December 2011

शिकवे


शिकवे क्यूं करूं मै जमाने से,जो जख्म दिए हैं सह लूंगी,
मेरी किस्मत है यही,ये सोच के मैं,गम के पैमाने पी लूंगी,

उन यादों को मैं क्यूं भूलूं मैं,
जिसने जीने का अरमान दिया,
कुछ भूलना ही है जरूरी तो मैं,
इस जालिम दुनिया को भूलूंगी,

गम का दामन क्यूं छोड़ूं मैं,
गम ही तो मुझे नई खुशियां देंगे,
जिसने हैं दिए मुझको ये गम,
उन खुशियों का दामन छोड़ूंगी,

फूलों का चमन न दो मुझको,
जो डाली से गिरे मुरझा जाए,
टूट के भी जो चुभते है,
उन कांटों के शहर में रह लूंगी,

मुझे मालूम है ये आसान नहीं,
मैं मांगूं जो,वो मिल ही जाए,
जो वो न मिले तो मौत मिले,
कुछ पाने के बहाने जी लूंगी,

शिकवे क्यूं करूं मै जमाने से,जो जख्म दिए हैं सह लूंगी,
मेरी किस्मत है यही,ये सोच के मैं,गम के पैमाने पी लूंगी,......प्रीति

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