खामोशी में छुपा चीत्कार,
जिसने भी समझा,
मानो उसने पढ़ ली,
कुदरत की हर रचना,
हंसी में ढका हुआ दर्द,
जिसने भी देखा,
मानो उसने देख लिया,
कुदरत का हर नजारा,
बातों में दबा हुआ राज,
जिसने भी जाना,
मानो उसने बूझ ली,
कुदरत की हर पहेली,
सन्नाटे में गूंजता शोर,
जिसने भी सुना,
मानो सुन ली आवाज उसकी,
जिसने खुद रचा इस कुदरत को,......प्रीति
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