Sunday 11 December 2011

खयाल




मेरा ये खयाल है कि और क्या कहूं?
दीप तुम्हे कहूं तो दीपों को क्या कहूं?

जिंदगी रौशन है सिर्फ तुम्हारे प्यार से,
रौशनी तुम्हे कहूं तो रौशनी को क्या कहूं?

दुनिया ने तुम्हे छीनकर सारे दीप बुझा दिए,
अब अंधेरा इसे कहूं तो अंधेरों को क्या कहूं?

याद में तुम्हारी दिल जार जार रोए,
दीवानगी इसे कहूं तो दीवानगी को क्या कहूं?

मेरा ये खयाल है कि और क्या कहूं????.......
दीप तुम्हे कहूं तो दीपों को क्या कहूं??.......प्रीति सुराना

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