हमारी वो एक-एक हंसी,
समझा जिसे तुमने हमारी खुशी,
न देखी उसके आड़ में,
हमारी नम निगाहें गमगीं,...
हमने हर गम हंसकर भुलाने की कोशिश जो की,
ज़माने ने नाकाम हर वो कोशिश भी की,..
जब-जब भी हमने गम का सहारा लिया,
किसी ने फिर भी न कोई सहारा दिया,..
फिर भी न देखी किसी ने
हमारी वो नम निगाहें गमगीं,..
ज़माने की हर निगाह ने बनाया हमें और गमगीं,..
जो गम भुलाना चाहा वो याद आया और भी,..
शुक्र अदा करते हैं हम उस गमगीं हंसी का,..
जिसने दी लब पर मुस्कुराहट और आंखो मॆं आंसू भी,..
फिर भी न देखी किसी ने
हमारी वो नम निगाहें गमगीं,.. प्रीति सुराना
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