न सूरज सा जलने के हुनर
न उगना उगाना
पर हर शाम ढल रहे हैं
न मंजिल का पता
न रास्ते का ठिकाना
बस बेमकसद चल रहे हैं
न चाँद सी शीतलता
न ढंग का रंग रुप
फिर भी ख्वाबों में निकल रहे हैं
न बर्फ सी तासीर
न जमना न पिघलना
लेकिन जम और पिघल रहे हैं।
न मिट्टी होने का अहसास
न मिट्टी होकर मिट्टी में मिलने का हौसला
देखो तो जुर्रत हमारी
बार-बार बन और बिखर रहे हैं।
हर शाम ढल रहे हैं
बेमकसद चल रहे हैं
ख्वाबों में निकल रहे हैं
जम और पिघल रहे हैं।
बन और बिखर रहे हैं।
प्रीति समकित सुराना
बहुत सुंदर
ReplyDeleteWao, badi hi sunder lines likhi hai apne, Mahadev Photo
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