Thursday 15 April 2021

मेरी 13वीं पुस्तक "प्रीत के गीत"

मेरी 13वीं पुस्तक "प्रीत के गीत" 
यूँ तो विमोचन हुए तीन महीने से ज्यादा हो गए हैं पर आज पन्ने पलटते हुए मन किया कि सखी Ranjana जी का आभार व्यक्त करुँ जिनकी लिखी भूमिका ने मेरी पुस्तक का महत्व बढ़ा दिया।
दिल से आभार सहित प्रस्तुत है उनकी लिखी भूमिका👇🏼

प्रीत के गीत की गूँज
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             अक्षर ब्रह्म है। शब्दों में समाहित अक्षर-समूह जीवन रचना का आधार है। अक्षर ही अभिव्यक्ति है और बाह्य-अन्तर अभिव्यक्ति ही अध्ययन-अनुभव, चरित्र और संस्कार की परिचायक है। शब्द लालित्य, मधुरता और पावित्र्य सहेज कर रखना और भावनात्मक सम्बन्धों को अपनी रचनाओं में जीवित रखना एक कवि की नैतिक जिम्मेदारी है।

उदयभानु हंस कहते हैं कि ----
             "वह शक्ति है कवि की कलम में जिससे इस धरती को वह स्वर्ग बना सकता है !"

             मन की गहरी झील में भाव हों और दृष्टि में सपने सजाने और पूरा करने की क्षमता, तो समूची कायनात स्थितियाँ पैदा करने का कारण बन ही जाती है, परन्तु किसी निर्झर की महीन ध्वनि मन के गहन अरण्य के एकान्त में तब तक सुनाई नहीं देती है, जब तक हम अपने मन के कोलाहल से स्वयं किनारा न कर लें। लवणयुक्त जिह्वा से मिश्री की मिठास कभी अनुभव नहीं की जा सकती। 
           प्रीति सुराना न केवल एक कवयित्री, लेखिका व सम्पादिका हैं, वरन् एक समाजसेविका भी हैं। गौशाला को मात्र शब्दों से ही बयां नहीं करतीं बल्कि सेवा और सुश्रूषा भी करती हैं। "औरत जब तक भी रहती है" --- यह उनके रक्त में प्रवाहित वह विषय है, जिसने अनगिनत महिलाओं को लेखन से जोड़ा है। छोटी-छोटी खुशियों को जीने का प्रोत्साहन दिया है।
                प्रीति सुराना एक आवाज है, जो संगठन की शक्ति बन जाती है। अपने आपको पहचानने का हुनर सिखाती है, अपना और अपनी भाषा हिन्दी का सम्मान करना सिखाती है, परन्तु हिन्दी पर होने वाली भाषायी और राजनैतिक नाइंसाफी से द्रवित हो प्रीति सुराना इस अत्याचार और अतिक्रमण से  भीतर तक कहीं टूट सी जाती हैं।
             मन को संभालते हुए, भावों को कलमबद्ध करते हुए, कवयित्री की काव्यगत उपमाएँ पार्थिव सौंदर्य की कल्पनाओं और अलंकारों में यथार्थ गढ़ती हैं। पर्वत, बादल, आसमां, पेड़ और धूप की परछाइयाँ उनके काव्य रूपी जल में उतर अठखेलियाँ करती हैं। प्रतिपल पाठकों के इर्द-गिर्द मृदु तरंगों का एहसास लिए उनके विषय अदृश्य रूप से मन को स्पर्श कर जाते है। 

कहते हैं कि-----
           मन यदि कुबेर हो जाए तो कनक राशि हर आँगन में बरस सकती है। यही सुवर्ण राशि बरसी है ------ प्रीति सुराना की नव कृति "प्रीत के गीत" के आँगन में लगभग 90 कविताओं की अविरत झड़ी बन।
               कवयित्री की लेखन के प्रति आसक्ति सर्वश्रुत है। उनके चिन्तन की परिधि में मृदा, पृथा, अम्बर, बूँद, बदली, समन्दर जैसे नैसर्गिक विषय और अश्क, सिसकी, मौन, अन्तस, दर्द जैसे करुणरस से ओतप्रोत विषयों की महक समायी रहती है, जो जरा, व्याधि इत्यादि को परे झटक कर अपनी खुशबू बिखेरती रहती है। आशा जब एक पल कभी निराशा की स्थिति भी उत्पन्न करती है, तो कवयित्री को लगता है कि "कुछ तो टूट रहा है अंदर", कभी सोचती है "दर्द की बदलियाँ हैं, गीत कैसे लिखूँ", मानो "लिख रही हूँ एक तराना" कहकर वह "अम्बर की अलगनी" पर "आँखों के नीर" को टाँग देना चाहती हैं।  
               घोर पूर्वाग्रहों और आत्ममुग्धता की गुंजलक में फंसे इस दौर में प्रीति सुराना द्वारा लिखी गई कविताओं के विषय में कहना होगा कि इन कविताओं के पठन पाठन से आरोहमान मानदण्डों तक पहुँचने की लालसा के तहत कवयित्री ने कविता की सुनहरी देहरी पर पाँव रखे हैं। 
              प्रीति सुराना अपने लिए साहित्य रूपी भास्कर से उष्मा पाती हैं। वे लेखन में इस कदर डूबी हुई हैं कि कलम और स्याही के बिना उनके प्राण प्रफुल्लित नहीं होते। वह कभी कहती हैं कि "अच्छे दिन आने तो दो" तो कभी खुद को आईने में देख कहती हैं "अच्छे दिन खुद क्यूँ नहीं लाते", कभी "चिन्ताएँ ही शेष रहीं" आज के भागम-भाग के समय में पेशानी पर अपने अक्स छोड़ जाती है।
             "प्रीत के गीत" में विषय बाहुल्य है। जिन पाठकों को ईश्वरीय वरदहस्त की मुमुक्षा है, उनके लिये "प्रभु थामो मेरी पतवार" जैसी कविता में प्रीति सुराना ने स्वयं को मानो भगवान को सौंप दिया है। "गणपति वंदना" में भगवान गणेश के एक सौ आठ नामों का स्मरण करते हुए उन्होंने अलख जगाई है। 
             पीड़ा की पराकाष्ठा को महसूस करते हुए कवयित्री प्रीति सुराना द्वारा लिखित कविताएँ हर दिल से होकर गुजरती हैं। सर्वकालव्यापी  समसामयिक काव्य अपनी छाप छोड़ते हैं --- "भीग रहा है अन्तस् मेरा", "गीत कैसे लिखूँ", "तबियत खराब सी है, खुशी नाराज़ सी है", "दर्द की बदलियाँ हैं" जैसे अनगिनत शीर्षक पाठकीय ऐषणा को, विशेष रूप से स्त्री विमर्श को झिंझोड़ कर, एक पल को साँसों की गति तेज़ करके भावनाओं को आकण्ठ कर जाते हैं। काव्य संग्रह ने मंजुल नाद उत्पन्न कर, मन के गलियारों में रस घोला है, जिसमें कवयित्री ने सहज, स्वाभाविक, प्रतिमान रचे हैं। उनके इस प्रयास का सर्वत्र स्वागत ही होगा।
         मानव मन को गूँथने के लिये जिस डोर और सूचिका की जरूरत है ,जो प्रवाह अभिलषित है, वही कवयित्री के उद्गार हैं।

कहा जा सकता है कि ----
            आसमां कागद हो और किरणें सुनहरी स्याही, तो जो भी लिखा जाएगा अप्रतिम ही होगा।

        इन कविताओं को महज कल्पना-प्रसूत व पीड़ा-जनित ही नहीं कहा जा सकता, अपितु वे मन के भाव-तन्तुओं को प्रियतर कंपन देती हैं। विद्वज्जनों के मध्य इस नव कृति का हार्दिक स्वागत होगा। काव्यात्मक उद्गार और रसमयता के संगम पर अधिष्ठित ये "प्रीत के गीत" पाठकों का अविरत स्नेह सम्पादित करेंगे, अपनी गूँज को धरा से लेकर अम्बर तक पहुँचाने में सक्षम होंगे,  इसी विश्वास के साथ----
     डॉ. प्रीति समकित सुराना को अनन्त शुभकामनाएँ।

 रंजना श्रीवास्तव
(कवयित्री/लेखिका) 
नागपुर - 440034
मो. 9096808191
( 17/12/2020 )

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