Monday, 18 March 2019

ज़िद

उनकी ज़िद थी
मैं झुकूँ
और
मैं समझी ही नहीं
टूटकर
फिर से झुकूँ कैसे???

प्रीति सुराना

3 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 19/03/2019 की बुलेटिन, " किस्मत का खेल जो भी हो “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. टूट गयी होती तो कोई प्रश्न न उठता..अभी जान बाकी है..

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