सुनो!
रिश्तों की उपयोगिता,
रिश्तों का उपभोग,
रिश्तों की उपेक्षा,
ये प्रेम की परिभाषा में नहीं है,..
बिना प्रेम के
रिश्तों का उपयोग,
उपभोग या उपेक्षा,
संभव भी नहीं,..
क्योंकि प्रेम ही देता है अधिकार
किसी पर निर्भर होकर मिले संबल का उपयोग करके
प्राप्त सुखों का उपभोग करके
अपनी अपेक्षाओं और इच्छाओं को पूरा करवाने का,...
जिससे प्रेम है उससे अपेक्षाएं है
कोई अजनबी
सपनो का साझेदार
कभी नहीं हो सकता,...
तुमसे मेरी अपेक्षाएं
उपयोग है ,
उपेक्षा है,
उपभोग है,..???
और
सचमुच
ये स्वार्थ है तो,..
फिर प्रेम क्या है???
प्रीति सुराना
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