Tuesday, 4 September 2018

कुछ भी छप जाता है

कुछ भी छप जाता है
हाँ! ये बात सही है
पर कभी सोचना गहराई से
ककहरा सीखा
और ककहरे से
कविता लिखने की
कोशिश की
अग्रेजी के दौर में
हिन्दी के सम्मान को
जिंदा रखने के लिए
अपने भावों की आहुति दी
अगर नवांकुर हो
तो एक बार
अपने बच्चे की जगह रहकर सोचना
पहली कक्षा से
पढ़ाई के अंतिम पड़ाव तक
कई इम्तिहान देने होते है
और हर कक्षा में
प्रथम द्वितिय और तृतीय के बाद भी
सभी उत्तीर्ण छात्र अगली कक्षा तक अग्रेसित किये जाते हैं,....
मैंने जिंदगी में कोई विद्यार्थी नहीं देखा
जो पहली से सीधा स्नातक हुआ हो
एक एक कदम बढ़ना ही नियति है
और हिन्द में हिन्दी के पटल पर
हिन्दी की हर रचना का स्वागत है,
अपने शिशु की तोतली बोली की तरह
कौन जाने कल कौन सी बोली
प्रखर वक्ता
और कौन सी कलम इतिहास लिख जाए,..
बस ये सोचो
हमारा लक्ष्य
*हिन्दी के सम्मान में, हर भारतीय मैदान में*,... प्रीति सुराना

0 comments:

Post a Comment