सुनो!
हर पल याद है
जो बीता
साथ तुम्हारे,
लड़ना-झगड़ना
गुस्सा-पीड़ा-आँसू
और हर बात का अंत
एक बार बाहों में आकर
सबकुछ भूल जाना,...
चाहे लड़े हों जितना भी
पर सनद रहे
ये अधिकार एक दूसरे के सिवा
हमने किसी को नहीं दिया,
तुम्हारा बदलना मुझे नहीं सुहाता
लगता है मानो
छीन लिया
वो अधिकार
जो सिर्फ मेरा था,...
मैंने ये कब कहा
मेरे लिए बदलो
मैंने हर बार कहा
मेरी खुशी के लिए
उनके लिए बदल जाओ
जो नहीं समझ पाते
तुम्हें सचमुच वैसे
जैसे तुम हो,...
हाँ!
मैं आ रही हूँ
लौटकर
उसी मोड़पर
जहाँ से तुम बदल रहे थे,..
लौट आना वहीं
एक बार फिर
मुझे कसकर
अपनी बाहों में भर लेना
और फिर
वही सब कुछ
फिर से होगा
जो छूट गया एक मोड़ पर,..
जो सिर्फ और सिर्फ
हमारा प्यार है
कोई और क्या समझेगा
ये अजब पहेली
जिसका जवाब सिर्फ हमें मालूम है,..
आ रहीं हूँ फिर वहीं
मेरा इंतज़ार करना,..
करोगे न???
प्रीति सुराना
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