Saturday 28 July 2018

*लो! मैं भी उपदेश देने लगी*😋

जिंदगी पाइथागोरस का प्रमेय नहीं ही जो हर हाल में एक निश्चित समाधान लेकर आएगी।
क्योंकि *जिंदगी का गणित उलझा हुआ है कठिन है, इसमें दो और दो हमेशा चार नहीं होते।*
        दुनिया में सबसे प्रचलित और आसान काम उपदेश और सलाह देना। पैसा लगे न टका और रंग भी चोखा। जिसे देखो वो ज्ञानचंद या रायचंद बना बैठा है।
          सुबह आँख खुलते ही सुप्रभात संदेशों की भरमार मोबाइल पर सोशल नेटवर्क में होती है। एक से बढ़कर एक संदेश जो कोई अमल में ले आए जो दुनिया स्वर्ग बने न बने, घर स्वर्ग बने न बने पर अमल करने वाला जरूर दुनिया का सबसे सुखी इंसान बन जाएगा। जो व्यक्ति रातें मोबाइल के साथ गुजरता जो सुबह का सूरज महीनों न देखता हो वो भी सूरज और सुबह की सुंदरता के संदेश प्रेषित करता है। जिसके घर मे माता-पिता तिरस्कृत हों वो माता-पिता की ईश्वरतुल्यता होने के संदेश भेजता है। नाम के लिए दान और नाम के लिए अग्रपंक्ति में नज़र आने वाले महामहिमों के व्यक्तिगत जीवन में सबसे ज्यादा झोल होते हैं।
         गृहस्थी और दुनियादारी छोड़ चुके बड़े-बड़े महात्माओं के प्रवचनों से जीवन तर जाएगा पर तब न जब परिवार और दुनिया के सारे लोग एक साथ खुद में परिवर्तन लाए। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को सलाह दे सकता है पर उसी परिस्थिति में जब खुद होता है सारे समाधान खुद भूल जाता है। आए दिन कोई न कोई कहता मिल जाएगा,....
*ज्ञान का अहंकार मत करो।
*माता पिता को भगवान का दर्जा दो।
*परिवार को एक सूत्र बनकर जोड़े रखो।
*समर्पण में ही सुख है।
*अपने लिए नहीं अपनों के लिए जियो।
*जो जितना ऊपर जाता है उतनी ही तेजी से नीचे गिरता है इसलिए सफलता पर इतराओ मत।
*दिनचर्या अनुशासित होनी चाहिए।
*खुद को श्रेष्ठ मत समझो।
*सब ईश्वर पर छोड़ दो केवल कर्म करो।
*ईमानदारी का जीवन जियो।
*दूसरों को खुश रखोगे तो खुशी खुद बखुद चलकर आएगी।
*जितनी जरूरत है उतना ही संग्रह करो।
*परहित सरिस धर्म नहीं भाई ।
*अति सर्वत्र वर्जयते।
आदि-इत्यादि।
       कहना सरल है अमल करना बहुत कठिन। उपदेशकों को एक सलाह कि उपदेश देते समय एक बार उस पात्र की जगह रहकर सोचिए तब कोई सलाह या मार्गदर्शन दीजिये। क्योंकि जो आप खुद कर सको तो ही दूसरों को उपदेश दो। जो आप खुद नहीं कर पाते वो दूसरों को कहकर पर उपदेश कुशल बहुतेरे की श्रेणी में खुद को खड़ा मत करो।
         मनुष्य के सामाजिक प्राणी होने के कारण उपदेशक होना अगर उसकी अनिवार्यता है तो कम से कम उपदेश, निर्देश, मार्गदर्शन या सलाह देते समय ये जरूर कहो कि तुम्हारी अनुकूलता हो तो,.... ये एक वाक्यांश पर उपदेश की श्रेणी से बचा लेगा।
एक छोटा सा संस्मरण साझा करती हूँ,.... एक बहुत बड़ी कंपनी के कार्यकर्ता हमारे एक करीब के रिश्तेदार के यहाँ जब हम पहुंचे तो वहां के राजसी ठाठ ने प्रभावित किया जिज्ञासु प्रवृति के चलते भोजन के दौरान बातों ही बातों में मैंने पूछ लिया कि कम्पनी में आप काम क्या करते हैं यानि किस डिपार्टमेंट में हैं? उन्होंने हँस कर जवाब दिया उस कंपनी में मेरी एक फैक्ट्री है। मैंने पूछा काहे की? उन्होंने हँसकर जवाब दिया सलाह देने की,.. मैं उस कम्पनी का प्रबंधन सलाहकार हूँ, कंपनी को अनुशासित तरीके से अधिक से अधिक लाभ के लिए सलाह देता हूँ। नियम और अनुशासन के सलाहकार की खुद की दिनचर्या देखकर मैं सकते में थी... खैर आजकल उपदेशकों का सलाहकारों का भविष्य बाबागिरी के रूप में काफी फलफूल रहा है, यत्रतत्र *पर उपदेश कुशल बहुतेरे* के जीते जागते उदाहरण मिल जाएंगे।
फिर भी अपने जीवन की समस्याओं को दूसरों के अनुसार नहीं अपने विवेक से सुलझाना ही सही है।
बेहतर जीवन के 5 सूत्र :-
1) कुछ तो लोग कहेंगे,लोगो का काम है कहना,.....इसलिए लोगों की परवाह न करें,....
2) सुनो सब की पर करो मन की,....यही सही है,...
3)जिससे खुद को संतुष्टि मिले और अपनो को खुशी,.. वही कार्य करें,...
4)जैसा व्यवहार हम अपने लिए चाहते हैं,वैसा व्यवहार दूसरों से करें,....
5)दूसरों के सुख से दुखी होकर समय व ऊर्जा बरबाद करने से अच्छा अपने सुख के लिए कार्य करें,...

नोट:- मुफ्त की सलाह मानते समय स्व-विवेक का प्रयोग करें,
         क्योकि हर बात हर देश काल परिस्थिति में लागू हो यह जरूरी नही,..

*लो! मैं भी उपदेश देने लगी*😋

डॉ. प्रीति सुराना
वारासिवनी (मप्र)

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