Friday, 22 June 2018

*ढाक के तीन पात*

सुनो!
मैं भी होना चाहती हूँ हठीली
तुम्हारे
गुस्से, ज़िद, बचपने
और
अड़ियलपन पर
आता है मुझे भी गुस्सा,...
बहुत मुश्किल से खुद को
करती हूँ तैयार
तुम्हारी तरह ही
गुस्सा, ज़िद, बचपना और अड़ियलपन के लिए,...
सोचती हूँ हर बार
इस बार रूठने पर
नहीं मानूँगी आसानी से,..
पर तुम्हारी नज़रों से नज़र मिलते ही
जाने कौन सा जादू हो जाता है
जिसमें होता है
बातों में गुस्सा
और आंखों में प्यार बेशुमार,..
और
और
और फिर
अचानक
सारा गुस्सा छू मंतर
शेष रहता है
प्रेम, विश्वास और समर्पण
मैं, तुम और हमारी जिंदगी
वही *'ढाक के तीन पात'*,..

*डॉ. प्रीति सुराना*

4 comments:

  1. https://bulletinofblog.blogspot.com/2018/06/blog-post_22.html

    ReplyDelete
  2. वाह ! सिद्ध हो गया प्रेम शाश्वत है और गुस्सा नश्वर..

    ReplyDelete
  3. सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  4. Aise hi rahein ye Dhaak ke 3 paat.

    ReplyDelete