Thursday 3 May 2018

पहली चोरी (संस्मरण)

*पहली चोरी*

कक्षा kg2 सन 1980 की बात है। स्लेट के साथ कलम की जोड़ी से मेरी थोड़ी ज्यादा ही दुश्मनी थी,...     
           नानी के घर रहकर मेरी पढ़ाई हुई है। लिहाजा नानी जिन्हें में माँ कहती थी उन्होंने ही पालन-पोषण किया।
     कलम खाने की बुरी लत थी। रोज माँ एक कलम देती थी और दूसरे दिन गायब। घर मे पूरा डिब्बा होता था। माँ की समझ मे नहीं आता था रोज कलम खत्म कैसे हो जाती थी।
दरअसल मैम जितनी देर स्कूल में लिखवाती उतनी देर में थोड़ी थोड़ी करके मैं पूरी कलम खा जाती थी।
थोड़े समय बाद रोज होमवर्क मिलने लगा, आगे a to z और पीछे A to Z  या अ से अः और 1 से 20 तक लिखकर ले जाना था। क्योंकि तब हमें सुलेख स्लेट में लिखवाया जाता था। कलम थी नहीं, माँ से रो रोकर कलम ली। और लिखते समय माँ ने कलम खाते देख लिया सजा ये कि अगले दिन स्कूल ले जाने के लिए कलम नहीं मिलेगी।
स्कूल में पेंसिल कम कलम ज्यादा चलती थी क्योंकि रड़के मैम जो प्राइमरी की प्राचार्या थीं वो स्लेट का उपयोग ज्यादा करवाती थी। पर कलम न होने से उन्होंने अगले 2 दिन डाँट और कलम लाने के आदेश के साथ कॉपी में क्लास वर्क करवाया।
शाम को घर जाकर में खूब रोई पर माँ बोली जब तक कलम नहीं खाने की कसम नही खाऊँगी कलम नहीं मिलेगी। जिद्दी तो थी ही मैंने वादा नहीं किया रोते-रोते सो गई पर रात को नींद खुल गई। माँ जहां कलम रखती थी वहाँ से चुपचाप दो कलम मैंने निकाल ली और एक कलम खा ली और दूसरी पेटी में (अल्युमिनियम की पेटी जो स्कूल ले कर जाती थी उसमें) छुपा ली।
अगले दिन लौटी तो माँ ने पूछा होमवर्क नहीं किया तो डाँट नही पड़ी। मैंने कहा पूजा की कलम से मैंने जल्दी-जल्दी लिख लिया (शुरू से लिखने में आलसी मगर फ़ास्ट राइटर थी) और उसकी छोटी सी कलम (जो खाने के बाद छोटी हो गई थी) उसने दी है जिससे मैं लिख लूंगी।
ये क्रम लगभग हफ्ते भर चला तब तक माँ को पता चल गया कलम चोरी का राज तो उन्होंने जगह बदल दी क्योंकि डिब्बा खाली होने की कगार पर था।
अगले दिन मेरी हालत खराब क्योंकि डिब्बा नदारद और माँ सामने खड़ी थी।
और फिर जो डाँट और पिटाई की जिन्दगी में दोबारा अभाव में काम चला लिया पर चोरी नहीं की और एक सबक और सीखा की पूरा कभी मत खाओ थोड़ा सा बचा लो😝 क्योंकि छोटी कलम से भी a और A लिखा जा सकता है।
ये संस्मरण भी सुना सुना है क्योंकि आज भी परिवार में गाहे बगाहे यादों के पिटारे खुलते हैं और बड़े तो बड़े मेरे बच्चे भी मजे लेते हैं। 😊
कलम खाना बहुत सालों तक छूटी नहीं। और सच बताऊं तो अब वैसी कलम मिलती भी नहीं पर स्कूल, स्लेट, कलम, माँ और टीचर्स की यादें आज भी जेहन में बसी है।

*बहुत याद आती है बचपन की बातें।*
*वो डाँट गुस्सा पिटाई और चांटे।*
*अभी दूर है जिंदगी के किनारे,*
*अभी से करें क्यों पचपन की बातें,...*

*प्रीति सुराना*

1 comment:

  1. तख्ती चलती थी तब...घर से सुलेख लिख कर ले जाते थे
    दानेदार दवात आती थी उसे घोल कर ले जाते थे...हाथ से बनाई कलम से लिखते थे...तख्ती साफ़ करने के लिए मुल्तानी मिटटी का प्रयोग किया जाता था...

    और बरता (मिटटी का चोक) तो खाने के काम ज्यादा आता था...
    बहुत सी चीजें तो मुझे भी याद आ गयी आपकी रचना पढकर :)

    स्वागत हैं आपका खैर 

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