जनवरी का सर्द मौसम,
याद आते रहे तुम हमदम।
फरवरी की शीतल बयार,
आता रहा बस तुमपे प्यार।
मार्च का महीना गुनगुना,
मन कहता कुछ सुन-सुना।
अप्रेल में बढ़ा जब ताप,
मिलन को मन ने किया विलाप।
मई में जलता रहा जीवन,
तुम ही मन में थे प्रतिक्षण।
जून में बारिश का इंतज़ार,
बरसा नहीं सनम का प्यार।
जुलाई में बरसती घटाएं,
तनहा वक्त बीता न बिताए।
अगस्त में त्योहारों की बहार,
मन रहा था बड़ा बेकरार।
सितम्बर थोड़ा पतझड़ी,
सूनी सूनी लगी हर घड़ी।
अक्टूबर में मौसम ए बहार,
अब था मुश्किल इंतज़ार।
नवंबर में ठंड शुरुआती,
मिलें तब दिया और बाती।
*दिसंबर* ठिठुरती हुई रात,
समर्पित तुम्हे हर जज़्बात।
दिन महीना और साल बीता,
आखिर में जाकर प्यार जीता।
होंगे न जुदा किसी हाल में
ये वादा करें नए साल में।
प्रीति सुराना
दिनांक 22/12/2016 को...
ReplyDeleteआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद... https://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
आप भी इस प्रस्तुति में....
सादर आमंत्रित हैं...
बहुत आभार आपका
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22-12-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2564 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत आभार आपका
Deleteबहुत खूब ... काश ऐसे ही साल बीतते रहें ...
ReplyDeleteवाह, बारहमासी
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