Sunday 25 October 2015

"एक बवंडर"

सुनो!!
आंखें नम और शब्द गुम हैं,..
कैसे बताऊं तुम्हें
अपनी मनोदशा,..
बस बिलकुल उसी दौर से
गुजरी हूं मैं भी
अभी-अभी,..

जैसे
वो सामने
गुमसुम चिरैया बैठी है ना!!
उसने बड़ी मेहनत से
तिनके-तिनके जोड़ कर
आशियाना बनाया था
अभी-अभी,..

तभी
अचानक एक बवंडर उठा..
फिर हुई
बेमौसम तेज़ बारिश
और
अगले ही पल
सब ख़त्म,... प्रीति सुराना

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