मन का मस्तिष्क से विमर्श चला
दुनिया और दुनियादारी
समझ से परे है
क्या करें क्या न करें?
तभी विचार आया
अच्छा यही होगा
पहले खुद को जान लूँ, समझ लूँ, बदल लूँ,..
तब मैंने
दृष्टि को बाह्य जगत से हटाकर
अन्तस की ओर मोड़ा,...!
दृष्टि क्या मुड़ी,
दृष्टिकोण के बदलते ही
जीवन की दिशा, दशा और दर्शन
सबकुछ बदल गया!
हाँ!
ये सच है
मूढ़ता में इतना सहज समाधान पाना भी
कस्तूरी की तरह दुर्लभ लगता है,...!
डॉ प्रीति समकित सुराना



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