मेरी आँखों में
सुनहरे ख्वाब पलते थे
पूरे होने को
हरदम मचलते थे
समय की धारा में
डूब गए कुछ ख्वाब
कुछ ख्वाब आँसुओं में
खुदकुशी कर बैठे
अंतिम क्रिया उन ख्वाबों की
हुई मेरी ही भावनाओं के सागर में
विघटित अस्थियों ने कर दिया
खारा मेरे अंतर्मन के शुद्ध जल को
अब कह सकती हूँ
इन्ही आँखों की कसम
मेरी आँखों में तैरता
सारा समुंदर मेरा है।
डॉ प्रीति समकित सुराना



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