रास्ते उबड़-खाबड़ हों
पैर कमजोर हों
मंजिल दूर हो
लेकिन
हौसले बरकरार हों
*जीना इसी का नाम है,..!*
अपनों में गैर हों
गैरों में अपने हों
दुर्लभ कुछ सपने हों
और
सही गलत की पहचान हो
*जीना इसी का नाम है,..!*
कुछ कम हो
थोड़े गम हो
पलकें भी नम हो
पर
होठों पर मुस्कान हो
*जीना इसी का नाम है,..!*
डॉ प्रीति समकित सुराना



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